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प्रबंधन और अभिशासन

Stewardship and Governance
आरंभ करने की तिथि :
Jun 10, 2015
अंतिम तिथि :
Aug 11, 2015
00:00 AM IST (GMT +5.30 Hrs)
प्रस्तुतियाँ समाप्त हो चुके

यह चर्चा विषय ‘भारत में स्वास्थ्य प्रणालियां:मौजूदा निष्पादन और ...

यह चर्चा विषय ‘भारत में स्वास्थ्य प्रणालियां:मौजूदा निष्पादन और संभाव्यता के बीच की दूरी को कम करना’ शीर्षक से हमारी पहली चर्चा के सन्दर्भ अवं जारी रखने के लिए हैं । पहले चर्चा में इस विषय पर टिप्पणी की है जो दूसरों की समीक्षा करने के लिए, हमारे ब्लॉग पर उपलब्ध हैं ।

कैसे हम प्रबन्ध और प्रशासन को मजबूत बनाने के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ को अधिकतम करें?

1. मुद्दे

1.1. अभिशासन और जवाबदेही से संबंधित मौजूदा तंत्रों में परिणामों की बजाय इनपुटों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।

1.2. स्वास्थ्य और इसके निर्धारकों से संबंधित मंत्रालयों और विभागों, विशेष रूप से एकीकृत बाल विकास सेवाएं कार्यक्रम (आंगनवाड़ी केन्द्रों का प्रचालन करता है), जल और स्वच्छता और स्कूल शिक्षा के बीच विचार-विनिमय के लिए अपर्याप्त तंत्र और अवसर हैं।

1.3. स्वास्थ्य कार्यक्रमों का अत्यधिक केन्द्रीकरण है और राज्यों के लिए कोई स्वतंत्रता और विकेन्द्रीकरण नहीं है। यह निम्नलिखित उदाहरणों में परिलक्षित होता है (i) राज्य परियोजना कार्यान्वयन योजनाओं (पीआईपी) का अनुमोदन केन्द्र में किया जाता है जिसके फलस्वरूप राज्य की सभी कार्यनीतियां केन्द्र के पूर्वानुमोदन के अधीन आ जाती हैं(ii)राज्य पीआईपी में मध्यावधि आशोधनों/संशोधनों के लिए भी केन्द्र का अनुमोदन लेना अपेक्षित है (iii) प्रत्यायित सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा-सामुदायिक स्वास्थ्य कामगार) को भुगतान किए जाने वाले मौद्रिक प्रोत्साहनों जैसे निर्णय अधिकार-प्राप्त कार्यक्रम समिति और मिशन संचालन समूह के स्तर पर लिए जाते हैं जो एनएचएम के तहत केन्द्रीय निकाय हैं जिसके फलस्वरूप ऐसे मामलों में स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने के संबंध में राज्य की क्षमता सीमित हो जाती है।

2. सुझाव

2.1. केन्द्र और राज्यों के बीच पारस्परिक प्रतिबद्धताओं को औपचारिक रूप देने के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) के उपाय का उपयोग किया जा सकता है। ऐसी क्रियाविधि से पूरी प्रणाली के सुधार के लिए राज्यों द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में परिणाम आधारित जवाबदेही में बढ़ोतरी होगी।

2.2. एमओयू को समवर्ती बाह्य मूल्यांकन के अधीन लाया जा सकता है जिसकी रिपोर्टों को राष्ट्रीय स्तर पर मिशन संचालन समूह तथा राज्य और जिला स्वास्थ्य सोसाइटियों की शासी निकाय के समक्ष रखा जा सकता है जिससे सुधारों के प्रति प्रतिबद्धता को प्रोत्साहन मिलेगा।

2.3. रोगियों को पूर्वप्रदत्त देखभाल के मॉडलों के अंतर्गत सार्वजनिक अथवा निजी क्षेत्रक के माध्यम से सेवाएं लेने का विकल्प देकर स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की जवाबदेही बढ़ायी जा सकती है।

2.4. स्वास्थ्य संबंधी व्यय में अपव्यय (लीकेज) की पहचान करने और उसे रोकने के लिए सार्वजनिक व्यय निगरानी सर्वेक्षण किए जा सकते हैं।

2.5. अभिसरण को बढ़ाने के लिए, आंगनवाड़ी केन्द्र को स्वास्थ्य सेवा प्रदायगी के केन्द्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।

2.6. राज्यों को पूर्ण अभिसरण विधि से ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस मनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।

2.7. एक स्वास्थ्य प्रभाव आकलन प्रकोष्ठ विकसित किया जा सकता है जो गैर-स्वास्थ्य विभागों की नीतियों और कार्यक्रमों के स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव के निर्धारण को समन्वित करेगा।

2.8. पंचायतों को सामाजिक क्षेत्रक के अंतर्गत अभिसरण में सार्थक भूमिका अदा करने हेतु अधिकृत किया जा सकता है।

2.9. राज्य स्तरीय संस्वीकृतिदाता समितियों के मुख्य सचिव को राज्य स्तर पर कार्यक्रम संबंधी निर्णय लेने की अनुमति देकर राज्यों के लिए स्वतंत्रता की कमी का समाधान किया जा सकता है जैसा कि कृषि विकास हेतु एक राष्ट्रीय कार्यक्रम राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के मामले में किया गया है।