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Inviting Ideas for Non-Institutionalised Rehabilitation of Divyaang Children

आरंभ करने की तिथि :
Oct 01, 2025
अंतिम तिथि :
Nov 30, 2025
17:30 PM IST (GMT +5.30 Hrs)
In 2025, the Central Adoption Resource Authority (CARA) is placing special focus on promoting family-based care for children with special needs (Divyaang children). In ...
My post no. 29
3. Policy for (SAAs) & (CCIs)
A.
वृद्ध आश्रम के कुछ वृद्ध जो स्वस्थ और शिक्षित हों और बच्चों की परवरिश को उत्सुक हों। इनको SAAS and CCIs में रखे।
SAAs and CCIs के संचालकों को वृद्ध लोगों को रखने का भी प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
जिससे वृद्ध लोगों का भी मन लग जाएगा और दिव्यांग बच्चों को भी पारिवारिक माहौल मिल जाएगा
दिव्यांग बच्चों को नाना नानी, बाबा दादी मिल जायेंगे
वृद्ध लोगों को दिव्यांग बच्चे को care का प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
एक कमरा भी दिया जा सकता है जहॉ वृद्ध व्यक्ति और
दिव्यांग बच्चा एक साथ एक कमरे में रहेंगे
24 घंटे Care हो जाएगी
Trained NGO भी appoint करे जो वृद्ध और दिव्यांग बच्चे की सही Care हो रहीं हैं जांचते रहे। सुझाव देते रहे
B.
दिव्यांग बच्चों को एक दूसरे का पार्टनर बना दे। जैसे कि जिसको आंखों से दिखाई नहीं देता उसके साथ ऐसे दिव्यांग बच्चें को रखें जिसको आंखों से दिखाई देता है। बाकि उसके पैर में हाथ में कुछ समस्या है। जिससे दोनों एक दूसरे से मिलकर एक दूसरे की सहायता करें और एक पारिवारिक भाईचारा बॉन्डिंग भी पनप जायेगी
Adoption of Divyaang children by private persons is fraught with risks of abuse. No monitoring is possible as such persons can be from places scattered all over India. Providing proper care to these children in tune with their specific needs for specific disabilities calls for specialized training. This cannot be normally provided by adopting person, even if he is otherwise well-meaning, unless he can afford to hire specially trained nurse for proper grooming of the child. The Indian scenario, where adoption of even normal children is not prevalent, the society is not yet ready for assuming the responsibility of Divyaang children.
Hence the stress should be on encouraging people to support from outside, institutions set up with trained and oriented personnel for nurturing such children. Only in very deserving cases, a child can be given away to a family in the way of adoption.
इससे समाज में पहले से परेशांन विकलांग लोग बहुत रहत महसूस कर सकेंगे इस सम्बन्ध में अगर आप चाहे तो मै एक डिटेल्ड मेमोरेंडम बना कर दे सकता हूँ बशर्ते आप मुझे इस काम के लिए अधिकृत करे मैं यह सेवा निशुल्क देने को तैयार हूँ। सादर विजय कुमार चोपड़ा 74 कल्याण विहार प्रथम फ्लोर दिल्ली 110009 Mobile 9891215678 9315605380 Email Cavkco@gmail.com
मुझे अपनी विशेष दिव्यांग पुत्री के हैंडीकैप सर्टिफिकेट बनाने के लिए अस्पताल के चक्कर काटने पड़े। मुझे तो छ से सात चाक्कर में यह मिल गया पर मुझे बहुत से कमजोर आर्थिक स्थिति के ब्लाइंड और अन्य दिव्यांग जन मिले जो एक एक साल से अस्पताल के चक्कर लगा रहे हे पर बनवा नहीं प् रहे है। इसी तरह रेलवे के सर्टिफिकेट के लिए भी बहुत परेशानी उठानी पद रही है। मेरा सुझाव् यह है कि सरकार जिस तरह इंडस्ट्री के लिए वन विंडो सलूशन निकालती है वैसे ही विकलांग लोगो के लिए अधिकतम दो बार में सारा काम करके उसी समय सर्टिफिकेट इशू किये जाने की व्यवस्था करनी चाहिए। यह कोई मुश्किल काम नहीं है पहले दिन सरे चेक उप हो जाए उसके बाद एक हफ्ते के बाद डॉक्टर की टीम असेसमेंट करके उसकी विकलांगता का प्रतिशत फिक्स करके हाथोहाथ सर्टिफिकेट इशू कर दे इसी तरह रेलवे का सर्टिफिकेट भी साथ साथ मिल जाना चाहिए जैसा की आजकल कंपनी के मामले में PF ESI टीडीएस PAN सभी एक साथ ही मिल जाते है। इससे समाज में पहले से परेशांन विकलांग लोग बहुत रहत महसूस कर सकेंगे इस सम्बन्ध में अगर आप चाहे तो मै एक डिटेल्ड मेमोरेंडम बना कर दे सकता हूँ बशर्ते
y post no. 28
मुझे एक व्यक्ति मिला है जिनको आंखों से दिखाई नहीं देता था। किसी कारण से उसकी आंखों की रोशनी चली गई थी। जिस कारण उसकी पत्नी, बच्चे छोड़ कर चले गए और उसकी नौकरी भी छूट गई। अब वह भीख मांग रहा था मंदिर में बैठकर। वह कह रहा था मेरे परिवार बाले भाई भतीजे मुझे तंग कर रहे हैं। मेरा मकान हड़पना चाहते हैं। धौंस धमकी दे रहे हैं।
जो मंदिर से जो भीख में खाना मिलता है उसी से गुजर चलाता हूं। कभी मुझे मिल जाता है खाना, कभी नहीं मिलता है।
दिव्यांगों की संपत्ति बेचते, या ट्रांसफर करते वक्त मजिस्ट्रेट के सामने गुप्त बयानात लिये जाए। तभी दिव्यांग की संपत्ति बिके।
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my post no. 27
परिवार में वृद्ध सुरक्षित नहीं है। बच्चे सुरक्षित नहीं है। महिलाएं सुरक्षित नहीं है। बेटियां सुरक्षित नहीं है।
तो फिर दिव्यांग कैसे सुरक्षित हो सकते हैं ?
परिवार या सरकार या माता-पिता तक दिव्यांगों के लिए संवेदनशील नहीं है। सरकार सिर्फ असंवेदनशील कागजी कानून बनाती है। जिसका कोई भी फायदा दिव्यांगों को नहीं मिलता है। सरकारी तंत्र सिर्फ अपने वेतन के लिए कार्य करता है। उनको किसी भी समस्या के समाधान में कोई दिलचस्पी नहीं है।
इसलिए जो चेंज मेकर दिव्यांगों की लिए कार्य करने को तैयार हो और वह बहुत से मुद्दे उठा रहे हो उनको आगे लाया जाए उनको ज़िम्मेदारी दी जाए।
my post no. 26
प्रत्येक शहर में दिव्यांगों की Care के लिए कंसल्टेंट होने चाहिए। इसके लिए शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू करना चाहिए जो दिव्यांगों की केयर के लिए शिक्षा दें।
प्रत्येक जिले में दिव्यांगों का हॉस्पिटल से जहां पर सभी तरह की चिकित्सा पद्धतियों की उपलब्धता हो।
दिव्यांगों की केयर के लिए ऑनलाइन डिप्लोमा कोर्स वीडियो, फिल्म, बुक्स, पोस्टर, गीत होनी चाहिए।
21 तरह के दिव्यांगों की बीमारियां है तो प्रत्येक बीमारी का फेसबुक ग्रुप, इंस्टाग्राम पेज, और यूट्यूब चैनल होना चाहिए।
दिव्यांगों का टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर होना चाहिए।
वृद्ध लोगों की तरह दिव्यांगों को भी सभी सुविधाएं मिलनी चाहिए जो वृद्ध लोगों को मिलती है। जैसे कि बैंक में डिपॉजिट पर ज्यादा ब्याज या सीनियर सिटिजन डिपॉजिट स्कीम आदि आदि।
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my post no. 25
वृद्ध आश्रम में कुछ दिव्यांग रखे जा सकते हैं। वृद्ध आश्रम के संचालकों को प्रशिक्षण देना पड़ेगा। वहां पर वृद्धो का भी मन लग जाएगा और बच्चों की भी अच्छी तरह से देखभाल हो जाएगी। बच्चों को ग्रैंड पेरेंट्स मिल जाएंगे। दिव्यांगों को फैमिली मिल जाएगी।
प्रत्येक शहर में एक एनजीओ भी होना चाहिए जो दिव्यांगों की देखभाल करें। दिव्यांग अगर परिवार में हो। या अडॉप्टेड हो। या केयर सेंटर पर हों।
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Community level initiative is required
In all govt community level groups one agenda point can be to create database of divyang people in their community and how to develop and utilise these divyang people
1. Community-Based Rehabilitation (CBR) 2.0
The existing CBR programs need modernization. Under a “CBR 2.0” model, each panchayat or urban ward could have a Divyaang Mitra Volunteer Network trained to assist children with daily needs such as mobility, learning, and communication.
Local youth and Anganwadi workers could be trained through short digital modules to identify developmental challenges early.
These volunteers could conduct home visits, coordinate with health professionals, and ensure continuity of therapy outside hospitals.
A CBR Digital App could track each child’s progress and link families with local services — physiotherapy, counselling, or assistive devices.
This model keeps rehabilitation within the child’s family and neighborhood, avoiding unnecessary institutionalization.
2. Parent Empowerment and “Home Therapist” Model
Parents are the first and most constant caregivers. Yet, they often feel helpless when professional help is unavailable in rural areas. A structu