Home | MyGov

Accessibility
ऐक्सेसिबिलिटी टूल
कलर एडजस्टमेंट
टेक्स्ट साइज़
नेविगेशन एडजस्टमेंट

फैशन उद्योग हेतु फैब्रिक का संवर्धन पर अपने विचार साझा करें

Share your views on Promotion of Fabrics for fashion industry
आरंभ करने की तिथि :
Mar 30, 2015
अंतिम तिथि :
Apr 30, 2015
18:30 PM IST (GMT +5.30 Hrs)
प्रस्तुतियाँ समाप्त हो चुके

फैशन उद्योग भारतीय वस्त्रव उद्योग के एक प्रमुख एवं महत्वबपूर्ण ...

फैशन उद्योग भारतीय वस्त्रव उद्योग के एक प्रमुख एवं महत्वबपूर्ण संघटक का प्रति‍निधित्व् करता है। भारतीय फैशन डिजाइनरों ने अपनी रचनात्मएक तथा परिश्रम के बल पर अंतर्राष्ट्री य बाजार में स्वीयं के लिए एक स्था न बनाया है। वस्त्रब उद्योग के शीर्ष भाग को देखते हुए, फैशन डिजाइनरों की वस्त्रन उद्योग में दूसरे छोर पर असंगठित क्षेत्र में परंपरागत हथकरघा बुनकरों तथा हस्तंशिल्पं कारीगरों के प्रति कुछ जिम्मेतदारी बनती है।

हमारे देश के हथकरघा एवं हस्तपशिल्पप उत्पा्द हमारी समृद्ध परंपरा एवं संस्कृोति का एक हिस्साद है तथा ये ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के उपरांत लाखों लोगों को आजीविका उपलब्धए कराते हैं। माननीय प्रधानमंत्री महोदय ने मूल्य वर्द्धन तथा नए बाजारों को तलाशने के लिए हथककरघा और हस्तेशिल्पध के फैशन उद्योग के साथ संपर्क कर बल दिया है जिससे बुनकरों/शिल्पियों की आय में नियमित आधार पर वृद्धि होगी। तदनुसार, वस्त्रस मंत्रालय ने माननीय प्रधानमंत्री महोदय की ‘मेक इन इंडिया’ पहल के अंतर्गत फैशन के साथ हथकरघा एवं हस्तलशिल्प् का संवर्धन प्रारंभ किया है, जोकि विकास को प्रतिभागी तथा समावेशी ‘सबका साथ –सबका विकास’ बनाने के उद्देश्यि को प्राप्तज करने के लिए बड़े स्तार पर उत्पाादन, रोजगार तथा निर्यात को बढ़ावा देने के‍ लिए ‘जीरो डिफेक्टड तथा जीरो इफेक्टश’, ‘कौशल, स्तार और गति’ पर विशिष्ट बल देती है।

इस प्रयत्नय के एक भाग के रूप में, बाजार मांग के अनुसार गुणवत्ताापूर्ण फैब्रिक के उत्पा दन हेतु हथकरघा बुनकरों तथा हत्ो शिल्पे कारीगरों को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उन्हेंथ समूहों में संगठित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं तथा बाजार मांग के अनुरूप गुणवत्ता‍पूर्ण फैब्रिक वीविंग/हस्ताशिल्पत वस्तुाओं को तैयार करने के लिए डिजाइन विकास, प्रशिक्षण, करघों, उपस्क रों, कच्ची सामग्री इत्यातदि के लिए आवश्याक सहायता उपलब्धह कराई जा रही है। बुनकरों/कारीगरों के एक समूह के लिए लगभग 50 लाख रुपए की लागत से कच्चीे सामग्री, तैयार उत्पा दों के भंडारण हेतु गोदाम सहित सामान्यस सुविधा केंद्र, इंटरनेट सुविधा के साथ कार्यालय, आराम कक्ष तथा प्रशिक्षण शेड की स्थादपना की जाएगी। फैशन फैब्रिक से संबंध रखने वाले उद्यमियों को निर्यात सहित विपणन के लिए ऐसे समूहों से संबद्ध किया जाएगा। विकास आयुक्त् (हथकरघा)/(हस्तहशिल्पक) इस संबंध में बुनकर सेवा केंद्रों तथा संबंधित राज्यउ सरकार की सहायता द्वारा आवश्य(क कदम उठा रहे हैं। इसके अतिरिक्तज, एक लाभकारी स्थिति के सृजन तथा सतत विकास के लिए बाल श्रम जैसी किसी घटना की रोकथाम जैसे सामाजिक अनुपालन तथा किसी भी प्रकार के प्रदूषण के नियंत्रण जैसे पर्यावरणीय अनुपालन के लिए आवश्यक ध्यान दिया जा रहा है।

फैशन के कपड़े के साथ काम कर रहे उद्यमियों को अपने विचार भेजने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।

आप अपनी टिप्पणियां 30 अप्रैल 2015 तक भेज सकते हैं।

352 सबमिशन दिखा रहा है
CPLP
Chandrakant Lodhavia 10 साल 1 महीना पहले

कोटन - एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स - आर्टीफिशियल यार्न - मील मेड प्रोड्क्क्स - सील्क नेचरल प्रोड्क्ट्स - वुल एनीमल प्रोड्क्ट्स - सभी यार्न तथा फेब्रीक्सका बजार है। सभी को अलग अलग प्रक्रिया करके आवश्यकता अनुसार बदला जा शकता है। हरेक स्टेट के अपने अपने ट्रेडीशन के रुप में पहना जा शकता है। यह हमारे भारतकी सांस्क्रुतिक पहचान है। जो हम हमारे राष्ट्रीय परेडमें देख शकते है। सभी चीजें हमें राष्ट्रीय प्रदर्शनमें भी देखने मीलती है।

CPLP
Chandrakant Lodhavia 10 साल 1 महीना पहले

वेस्ट कोटन फेब्रीक्स से बहोत सारे हेन्डीक्राफ्ट्स उत्पादन बनतें है। ईसे रूई-खेत जोन बनाकर कोटेज ईन्डस्ट्रीसको बढावा देना चाहिये। जिसे उस क्षेत्रकी महिलाओंको रोजी रोटीका अवसर दे शकेंगे। यह सामान सारे विश्वमें बेचा जा शकता है।

CPLP
Chandrakant Lodhavia 10 साल 1 महीना पहले

आर्ट सील्कसे बना कपडा हमारे भारतके लायक नहीं है। ईस लिये उसके उत्पादन को ज्यादा कर/एकसाईझ लगाकर हमारे कोटन कपडें के क्षेत्र को प्रोत्साहन देना आवश्यक है। रेयोन यार्न बनाने में बडी जगह / मुडीकी आवश्यकता रहती है। कोटन यार्न बनाने के लिये कम मुडी और कम जगह की आवशकता है। ईसे कोटेज इन्डस्ट्रिस का दर्जा देकर मांग बढानेमें प्रोत्साहीत करना चाहीए।

CPLP
Chandrakant Lodhavia 10 साल 1 महीना पहले

हमें रुई-खेत जोन हरेक स्टेटमें बनाना है, जहां कपास पेदा होते है। याने की कच्चा माल तथा उसमें से अंतिम उपयोगमें लेनेका मालकी प्रक्रिया सिमित क्षेत्रमें करनी होगी। जीसे गावोंका विकास तथा सिमित क्षेत्रमें रोजी रोटी के सवसर बने रहेंगे। गांव छोडकर लोग शहरकी और नहीं जायेंगे।

CPLP
Chandrakant Lodhavia 10 साल 1 महीना पहले

कपडा यह खेत में पेदा हुए कपासका रुप है। ईसे हमें एग्रीकल्चर उत्पादन मानना पडेगा।
हम बडी तादातमें कपास / रूई कच्चे रूपमें निर्यात करते है। यह बंद होना चाहिए। सारी एन.टी.सी. मिलें रुई खरीद करें और कपडा बनाये यह आवश्यक है। यह कपडा / ईसे बनें रेडीमेड गार्मेंट बनाने पर जो सरकारी कर तथा एकसाईझ शुल्क लगता है यह वापस किसान तथा खेत मझुरोंके धनजन योजनामें खुले खातोमें सबसीडीके रुपमें जमा करना चाहिये। याने के कपास से जो वेल्यु एडीशन है यह वापस किसानके काम आना चाहिये। सभी प्रक्रिया रुई खेत झोनमें करनी है।

humanmachine09@gmail.com
sukhjit singh 10 साल 1 महीना पहले

Establishment of Indian brands are necessary according to user sentiments and for the sake of this you need to have real upmarket standard in domestic industries.you need to upmarket your machines your technology and there is no harm in bringing a policy like industry based incentives and schemes where industry help each other to grow.for making brands international you ned to have big companies with proper handling of businesses.for handling and regular growth u need zonal forms.

tips | Keyboard