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शिक्षा को नियोजनीयता से जोड़ने के लिए उद्योग के साथ संयोजन

Engagement with industry to link education to employability
आरंभ करने की तिथि :
Jan 22, 2015
अंतिम तिथि :
Nov 01, 2015
00:00 AM IST (GMT +5.30 Hrs)
प्रस्तुतियाँ समाप्त हो चुके

हमारे छात्रों की नियोजनीयता एक चिंता का मामला है। स्पेक्ट्रम की ...

हमारे छात्रों की नियोजनीयता एक चिंता का मामला है। स्पेक्ट्रम की दूसरी तरफ शोध में अधिक निवेश की आवश्यकता है। उद्योग अकादमिक संपर्क इन्हें जोड़ने के लिए आवश्यक है। यद्यपि हमने इस दिशा में विभिन्न प्रयास किए हैं फिर भी आशा के अनुरूप ये फलदायक सिद्ध नहीं हुए। हमे यह पता करना जरूरी है कि अधिक फलदायक सहभागिता के लिए कैसे और किसकी आवश्यकता है।

875 सबमिशन दिखा रहा है
DR PRABHAT SHARMA
DR PRABHAT SHARMA 10 साल 6 महीने पहले

Heavy weight bags with school books mostly from 1st class education are not providing any meaningful lessons. Other way we can say, if we identify the child skill in his/her childhood then school classes should divide as per child skill either professional or creative. Now main point behind this, at the starting point from classroom, if we link these skills from education systems, then unemployment problem should be automatically resolved.Today school give all burden on the parents.

Avinash Chander
Avinash Chander 10 साल 6 महीने पहले

अध्ययन-अध्यापन और ज्ञान पर ही समाज का पूरा भविष्य आधारित है।
अध्ययन-अध्यापन और ‘ज्ञान’ समाज सुधार और जीवोद्धार तथा सुखी-सम्पन्न समाज हेतु सर्वप्रथम सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सभी के लिए ही एक अनिवार्यतः आवश्यक विधान है ।
ईमान-सच्चाई-संयम-सेवा अनिवार्य होना चाहिये !
विद्या को कभी भी व्यावसायिक नहीं अपितु लक्ष्यमूलक व्यावहारिक ही होना चाहिए । यह तब ही सम्भव है जब कि ‘पिण्ड और ब्रह्माण्ड’ की यथार्थतः जानकारी के साथ ही दोनों में आपस में ताल-मेल सन्तुलन बने-बनाये रहने वाला ही हो |

Monika Kawadia
Monika Kawadia 10 साल 6 महीने पहले

अध्ययन-अध्यापन और ज्ञान पर ही समाज का पूरा भविष्य आधारित है।
अध्ययन-अध्यापन और ‘ज्ञान’ समाज सुधार और जीवोद्धार तथा सुखी-सम्पन्न समाज हेतु सर्वप्रथम सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सभी के लिए ही एक अनिवार्यतः आवश्यक विधान है ।
ईमान-सच्चाई-संयम-सेवा अनिवार्य होना चाहिये !
विद्या को कभी भी व्यावसायिक नहीं अपितु लक्ष्यमूलक व्यावहारिक ही होना चाहिए । यह तब ही सम्भव है जब कि ‘पिण्ड और ब्रह्माण्ड’ की यथार्थतः जानकारी के साथ ही दोनों में आपस में ताल-मेल सन्तुलन बने-बनाये रहने वाला ही हो |

megha tripathi
megha tripathi 10 साल 6 महीने पहले

अध्ययन-अध्यापन और ज्ञान पर ही समाज का पूरा भविष्य आधारित है।
अध्ययन-अध्यापन और ‘ज्ञान’ समाज सुधार और जीवोद्धार तथा सुखी-सम्पन्न समाज हेतु सर्वप्रथम सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सभी के लिए ही एक अनिवार्यतः आवश्यक विधान है ।
ईमान-सच्चाई-संयम-सेवा अनिवार्य होना चाहिये !
विद्या को कभी भी व्यावसायिक नहीं अपितु लक्ष्यमूलक व्यावहारिक ही होना चाहिए । यह तब ही सम्भव है जब कि ‘पिण्ड और ब्रह्माण्ड’ की यथार्थतः जानकारी के साथ ही दोनों में आपस में ताल-मेल सन्तुलन बने-बनाये रहने वाला ही हो |

Pankaj ji
Pankaj ji 10 साल 6 महीने पहले

अध्ययन-अध्यापन और ज्ञान पर ही समाज का पूरा भविष्य आधारित है।
अध्ययन-अध्यापन और ‘ज्ञान’ समाज सुधार और जीवोद्धार तथा सुखी-सम्पन्न समाज हेतु सर्वप्रथम सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सभी के लिए ही एक अनिवार्यतः आवश्यक विधान है ।
ईमान-सच्चाई-संयम-सेवा अनिवार्य होना चाहिये !
विद्या को कभी भी व्यावसायिक नहीं अपितु लक्ष्यमूलक व्यावहारिक ही होना चाहिए । यह तब ही सम्भव है जब कि ‘पिण्ड और ब्रह्माण्ड’ की यथार्थतः जानकारी के साथ ही दोनों में आपस में ताल-मेल सन्तुलन बने-बनाये रहने वाला ही हो |

SUSHEEL DUBEY
SUSHEEL DUBEY 10 साल 6 महीने पहले

अध्ययन-अध्यापन और ज्ञान पर ही समाज का पूरा भविष्य आधारित है।
अध्ययन-अध्यापन और ‘ज्ञान’ समाज सुधार और जीवोद्धार तथा सुखी-सम्पन्न समाज हेतु सर्वप्रथम सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सभी के लिए ही एक अनिवार्यतः आवश्यक विधान है ।
ईमान-सच्चाई-संयम-सेवा अनिवार्य होना चाहिये !
विद्या को कभी भी व्यावसायिक नहीं अपितु लक्ष्यमूलक व्यावहारिक ही होना चाहिए । यह तब ही सम्भव है जब कि ‘पिण्ड और ब्रह्माण्ड’ की यथार्थतः जानकारी के साथ ही दोनों में आपस में ताल-मेल सन्तुलन बने-बनाये रहने वाला ही हो |

SUSHEEL DUBEY
SUSHEEL DUBEY 10 साल 6 महीने पहले

अध्ययन-अध्यापन और ज्ञान पर ही समाज का पूरा भविष्य आधारित है।
अध्ययन-अध्यापन और ‘ज्ञान’ समाज सुधार और जीवोद्धार तथा सुखी-सम्पन्न समाज हेतु सर्वप्रथम सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सभी के लिए ही एक अनिवार्यतः आवश्यक विधान है ।
ईमान-सच्चाई-संयम-सेवा अनिवार्य होना चाहिये !
विद्या को कभी भी व्यावसायिक नहीं अपितु लक्ष्यमूलक व्यावहारिक ही होना चाहिए । यह तब ही सम्भव है जब कि ‘पिण्ड और ब्रह्माण्ड’ की यथार्थतः जानकारी के साथ ही दोनों में आपस में ताल-मेल सन्तुलन बने-बनाये रहने वाला ही हो |

arti pandey
arti pandey 10 साल 6 महीने पहले

अध्ययन-अध्यापन और ज्ञान पर ही समाज का पूरा भविष्य आधारित है।
अध्ययन-अध्यापन और ‘ज्ञान’ समाज सुधार और जीवोद्धार तथा सुखी-सम्पन्न समाज हेतु सर्वप्रथम सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सभी के लिए ही एक अनिवार्यतः आवश्यक विधान है ।
ईमान-सच्चाई-संयम-सेवा अनिवार्य होना चाहिये !
विद्या को कभी भी व्यावसायिक नहीं अपितु लक्ष्यमूलक व्यावहारिक ही होना चाहिए । यह तब ही सम्भव है जब कि ‘पिण्ड और ब्रह्माण्ड’ की यथार्थतः जानकारी के साथ ही दोनों में आपस में ताल-मेल सन्तुलन बने-बनाये रहने वाला ही हो |

karishma vashishtha
karishma vashishtha 10 साल 6 महीने पहले

more of a headache and a chase to get a certificate for summer trainings than a pure learning experience as students have to do too much toiling to enroll in a pragram as few govt institutes which offer training. moreover , there are very few seats. so, approach is the only way out.extra difficult for m.sc students as they are not preferred ovet b.tech ppl. private players gain, students lose and the faculty sleeps. the training arrangement should be done within colleges for poor students.

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