यह चर्चा विषय ‘भारत में स्वास्थ्य प्रणालियां:मौजूदा निष्पादन और संभाव्यता के बीच की दूरी को कम करना’ शीर्षक से हमारी पहली चर्चा के सन्दर्भ अवं जारी रखने के लिए हैं । पहले चर्चा में इस विषय पर टिप्पणी की है जो दूसरों की समीक्षा करने के लिए, हमारे ब्लॉग पर उपलब्ध हैं ।
कैसे हम सार्वजनिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाने के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ को अधिकतम करें?
1. मुद्दे
1.1. स्वास्थ्य प्रणाली में, शुरूआती दौर में ही रोकथाम तथा लोक स्वास्थ्य पर ध्यान कम है।
1.2. बुनियादी स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिए कम लागत वाली कार्यनीतियों के दायरे में सभी लोग शामिल नहीं हैं।
1.3. लोक स्वास्थ्य विनियम तथा प्रबंधन के अप्रभावी होने के कारण लोक स्वास्थ्य गतिविधियों का कार्यान्वयन सीमित हो जाता है।
2. सुझाव
2.1. लोक स्वास्थ्य अधिनियम के प्रवर्तन के अधिनियमन को अनिवार्य रूप से प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
2.2. केंद्रीय अथवा राज्य स्तर पर भर्ती किए गए लोगों और पेशेवर रूप से प्रशिक्षित लोगों के लिए लोक स्वास्थ्य संवर्ग सृजित किया जाए। यह संवर्ग लोक स्वास्थ्य प्रबंधन के प्रति समर्पित होगा तथा लोक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की समग्र दक्षता में वृद्धि करेगा।
2.3. विनियमों के कार्यान्वयन हेतु ज़िम्मेदारी तथा क्षमता लोक स्वास्थ्य अधिकारियों/लोक स्वास्थ्य संवर्ग को सौंपी जाए,जैसे-पीसीपीएनडीटी अधिनियम(अवधारणा-पूर्व तथा प्रसव-पूर्व जांच तकनीकें), खाद्य मानक सुरक्षा अधिनियम, औषधि तथा कॉस्मेटिक्स अधिनियम।
2.4. लोक स्वास्थ्य विनियमों को अधिनियमित तथा कार्यान्वित किया जाना चाहिए ताकि लोक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं का प्रभावी समाधान हो सके, जैसे- असंचारी रोगों(एनसीडी) के प्रति जोखिम की संभावना का निवारण, मच्छर पनपने की जगहों को कम करने के लिए सिविक और भवन निर्माण उप-नियमों के प्रवर्तन का अधिनियमन।
2.5. स्वास्थ्य शिक्षा तथा व्यवहारगत परिवर्तन संचार संबंधी मौजूदा अभियानों का सुदृढीकरण किया जाना चाहिए। इनमें एनसीडी की रोकथाम की कार्यनीति पर बल दिया जाना चाहिए ,जैसे- प्रसंस्कृत आहार में नमक में कमी/घर पर बने भोजन में दैनिक रूप से प्रयुक्त नमक में कमी, कैंसर की जांच, तंबाकू छोड़ने के लिए परामर्शी सेवा, आहार और शारीरिक सक्रियता संबंधी स्वास्थ्य शिक्षा, गहन ग्लाइकीमिया नियंत्रण, विद्यालयों में शारीरिक सक्रियता को बढ़ावा, व्यवसायजन्य स्वास्थ्य संवर्द्धन,जैसे-कार्यस्थलों पर सुरक्षात्मक उपायों को बढ़ावा, संचारी रोगों की रोकथाम,जैसे-मच्छरों के पनपने की जगहों को कम करने के बारे में जनजागरूकता, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मास मीडिया के अभियान शुरू किए जाएं ताकि इससे जुड़ी भ्रांतियां दूर हों और परिजन सहयोगी तथा संवेदनशील बनने के लिए प्रेरित हों।
2.6. स्वास्थ्य संवर्द्धन और निवारण,पुनर्वास देखभाल के लिए, ख़ासकर गैर-संचारी रोगों और बुजुर्गों की देखभाल के लिए वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति,जैसे-आयुष(आयुर्वेद, योग तथा नैचुरोपैथी,यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) की अच्छाइयों को बढ़ावा।
2.7. व्यवसायजन्य स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए कामगारों की स्क्रीनिंग शुरू की जाए।
2.8. असाध्य रोगों के मामले में रोगियों को अपनी देखभाल खुद करने और देखभाल करने वालों को शिक्षित करने का काम शुरू किया जाए ताकि रोगियों के लिए दीर्घकालिक परिणाम बेहतर हो सकें।
2.9. तपेदिक का आसानी से और शुरू में ही पता लगाना तथा प्रत्यक्ष अल्पावधि उपचार(डॉट्स) सहित औषधि प्रतिरोधी तपेदिक कार्यक्रमजन्य प्रबंधन(पीएमटीडी) सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
2.10. गर्भावस्था,प्रसवकाल में तथा प्रसवोत्तर महिलाओँ की देखबाल के लिए दाई जैसी व्यवस्था विकसित की जाए। इससे स्त्रीरोग विशेषज्ञ की सेवाएं प्राप्त न हो पाने की स्थिति में सुरक्षा तथा कम लागत वाली देखभाल की जा सकती है तथा प्रसव के ठीक रहने की संभावना बढ़ जाती है।(महिलाओं को प्रसव के दौरान दाई की निगरानी में रहने की पेशकश करने से समय-पूर्व प्रसव होने तथागर्भावस्था के 24 सप्ताह से पूर्व ही भ्रूण के नष्ट होने का ख़तरा बढ़ जाता है)।
2.11. समय-पूर्व जन्म तथा जन्म के समय बच्चे का वजन कम होने की रोकथाम के लिए सहज कार्यनीति अपनाई जाए,जैसे- गर्भधारण से पूर्व देखभाल का पैकेज, प्रसव-पूर्व देखभाल, समुचित इंडक्शन और सिजेरियन को बढ़ावा देने के लिए प्रदाता शिक्षा,समय-पूर्व जन्मे शिशु की देखभाल तथा समय-पूर्व प्रसव की देखभाल पर ज़ोर दिया जाना चाहिए।
2.12. मातृ मृत्यु दर की समीक्षा व्यवस्था को मज़बूत किया जाना चाहिए ताकि रिपोर्टिंग प्रणाली बेहतर हो, दायरा बढ़े, निजी क्षेत्रक डेटा का समावेश हो सके तथा डेटा को सार्वजनिक किया जा सके।
2.13. कांट्रासेप्शन की स्पेसिंग प्रणाली के अलावा लिमिटिंग प्रणाली पर बल देने से परिवार कल्याण सेवा का अपटेक बढ़ जाता है।