यह चर्चा विषय ‘भारत में स्वास्थ्य प्रणालियां:मौजूदा निष्पादन और संभाव्यता के बीच की दूरी को कम करना’ शीर्षक से हमारी पहली चर्चा के सन्दर्भ अवं जारी रखने के लिए हैं । पहले चर्चा में इस विषय पर टिप्पणी की है जो दूसरों की समीक्षा करने के लिए, हमारे ब्लॉग पर उपलब्ध हैं ।
कैसे हम सेवा वितरण को मजबूत बनाने के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ को अधिकतम करें?
क. पहुंच,निरन्तरता तथा सेवा का संगठन
1. मुद्दे
1.1. सेवाएं निर्धनतम तथा सबसे वंचित समूहों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पातीं।
1.2. स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं के विभिन्न स्तरों के बीच नेटवर्किंग न होने से देखभाल समेकित रूप से नहीं हो पाती,द्वितीयक तथा तृतीयक स्वास्थ्य सुविधाओं का दुहराव होता है।
1.3. संभावित व्यवधानों की अनिवार्यता तथा लागत-प्रभाविता का साक्ष्य न होने के कारण निवेश संबंधी त्वरित फैसले लेने में बाधा आती है तथा इससे विभिन्न स्तरों की सेवाओं(प्राथमिक बनाम द्वितीयक/तृतीयक) के प्रावधान में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
2. सुझाव
2.1. कमज़ोर समूहों के सेवा लेने में आ रही बाधाओं की पहचान अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए तथा उनका समाधान किया जाना चाहिए।1
2.2. बिखरे डेटा को एकत्रित करने के लिए अनुवीक्षण तथा मूल्यांकन प्रणाली अनिवार्य रूप से बनाई जानी चाहिए ताकि बेहतर निर्णय लिए जा सकें।
2.3. मौजूदा चल चिकित्सा इकाइयों का विस्तार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावा ऐसे विशिष्ट क्षेत्रों में भी किया जाना चाहिए जहां आबादी चलनशील होती है(द्वीप,बाढ़ के मैदान)।
2.4. कमज़ोर तथा वंचित समूहों के लिए विशेष सेवाएं,जैसे-संघर्षरत इलाकों में मानसिक त्रासदी झेलने वाले पीड़ितों का परामर्श, अन्यरूपेण सक्षम लोगों के लिए सेवाएं अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए।
2.5. उप-केंद्रों , प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, ज़िला अस्पतालों तथा चिकित्सा महाविद्यालयों की नेटवर्किंग से रोकथाम, आकलन, रेफरल तथा उपयुक्त स्तर पर रोगियों का प्रबंधन प्रभावी तरीक़े से हो सकता है। सुविधाओं के नेटवर्क के लिए चिकित्सा महाविद्यालय व्यापक दृष्टिकोण, नेतृत्व तथा अवसर प्रदान कर सकते हैं।
2.6. सेवाओं का एक अनिवार्य स्वास्थ्य पैकेज विकसित किया जाना चाहिए जो ज़िल में सभी निवासियों को मिले। यह पैकेज अनिवार्यता तथा लागत-प्रभाविता के मानदंड पर आधारित होना चाहिए जो किसी पेशेवर इकाई द्वारा स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी आकलन के माध्यम से सुनिश्चित किया जा सकता है।
2.7. स्वास्थ्य सेवाओं के वित्तपोषण,संगठन तथा सेवा उपलब्धता की नवप्रवर्तनकारी पद्धतियों के माध्यम से दक्षता में वृद्धि के लिए विषय विशेष से जुड़ी कार्यपद्धति को विकसित करने तथा उसके मूल्यांकन की आवश्यकता है। इसके लिए पूर्ण स्वास्थ्य कवरेज पायलटों का मूल्यांकन ज़रूरी है ताकि यूएचसी के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में हुई प्रगति के लिए विभिन्न कार्यनीतियों की जांच की जा सके।
ख. तृतीयक तथा आपात सेवा
3. मुद्दे
3.1. तृतीयक सेवा संस्थानों की स्थापना तथा उनके संचालन के लिए काफी व्यय करना होता है। अगर तृतीयक सेवा संस्थान अपनी निधि स्वयं सृजित नहीं करते तो नए संस्थानों अथवा प्राथमिक चिकित्सा के लिए कोई धन उपलब्ध नहीं होगा।
3.2. आपात सेवा या अभिघात उपचार सुविधाओं के नेटवर्क के आकलन अथवा आपात मामलों में स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति दायित्व निर्धारण के लिए देश में कोई मानदंड नहीं है।
4. सुझाव
4.1. प्रचालनात्मक और संसाधन सृजन से संबंधित मामलों में तृतीयक देखभाल संबंधी संस्थाओं और अस्पतालों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान की जा सकती है ताकि इन्हें परिणामों के लिए जवाबदेही के साथ व्यापक रूप से प्रबंधित इकाइयों के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाया जा सके। राजस्व के स्व-सृजन संबंधी मॉडलों में तमिलनाडु स्थित अरविंद आई केयर सिस्टम भी शामिल है जिसका अनुकरण किया जा सकता है।
4.2. मेडीकल कॉलेजों को प्रादेशिक उत्तरदायित्व लेना चाहिए और अपने क्षेत्र में सभी व्यावसायिकों के लिए शैक्षिक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए।
4.3. चूंकि आपातकालीन परिस्थितियों में जीवन-रक्षा के लिए समय एक महत्वपूर्ण कारक है, इसलिए प्रत्येक नागरिक के लिए निश्चित समय के अंदर एम्बुलेंस नेटवर्कों के माध्यम से अभिघात केन्द्र (ट्रामा सेंटर) की सुलभ सुविधा होनी चाहिए।
4.4. विकसित देशों की तर्ज पर, संभवतः अग्निशमन विभागों में आपातकालीन मेडीकल रेफरल प्रणाली स्थापित करने (जो आपदा प्रबंधन और अनुक्रिया के लिए भी उपयोगी होगी) पर विचार किया जा सकता है।
4.5. हैसियत अथवा भुगतान करने के सामर्थ्य पर ध्यान दिए बिना, सभी अस्पतालों के लिए, आपातकालीन चिकित्सा उपचार को अनिवार्य बनाने हेतु कानून बनाने पर विचार करना। अमेरिका में इसी प्रकार का कानून (इमरजेंसी मेडीकल ट्रीटमेंट एंड एक्टिव लेबर एक्ट-ईएमटीएएलए) परिहार्य मौतों को रोकने में काफी मददगार रहा है।
ग. देखभाल की गुणता
5. मुद्दे
5.1. भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (आईपीएचएस) के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुरूपता का स्तर अत्यंत कम है – (आईपीएचएस के स्तर तक क्रमोन्नत सुविधाएं – 25% एससीज, 21% पीएचसीज, 25% सीएचसीज)।
5.2. देखभाल के मानकों और इनके साथ असमरूपता के बारे में अपर्याप्त ज्ञान है और अनुपालन के अपर्याप्त पर्यवेक्षण की वजह से स्थिति और खराब हो रही है।
5.3. स्वास्थ्य व्यवसायियों द्वारा मानक उपचार दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया जाता है।
5.4. चिकित्सा त्रुटियों की वजह से अपव्यय बढ़ता है और मरीजों को प्रतिकूल परिणाम झेलने पड़ते हैं।
6. सुझाव
6.1. सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को समयबद्ध रूप से भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों तक क्रमोन्नत करने की जरूरत है।
6.2. गुणता मानकों के मापन और प्रमाणन की संस्थागत व्यवस्थाओं को स्वास्थ्य सुविधाओं के अभिकल्प में अन्तर्निहित करने की जरूरत है।
6.3. स्वास्थ्य सुविधाओं को पूर्व-निर्धारित मानदंडों के आधार पर बेहतर कार्य-निष्पादन के लिए प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं और इन्हें गुणता रेटिंग को हासिल करने और बेहतर बनाने के लिए टीम के साथ साझा किया जा सकता है।
6.4. चिकित्सा त्रुटियों के लिए नैदानिक जांच, सूचना प्रणालियों की व्यवस्था की जा सकती है जिससे त्रुटियों की पहचान करने और उनसे सीखने में मदद मिलेगी।
6.5. रोगी सुरक्षा, चिकित्सा त्रुटियों की पहचान और निवारण के तरीकों के क्षेत्र में अनुसंधान के साथ-साथ त्रुटियों के निवारण के तरीकों पर स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं और प्रशासकों को सूचना का प्रचार-प्रसार किया जा सकता है।
घ. सामुदायिक भागीदारी और ग्राहकों के अधिकार
7. मुद्दे
7.1. स्वास्थ्य प्रणाली सुदृढ़ीकरण के परिणामों को हासिल करने में समुदाय की अपर्याप्त भागीदारी है।
7.2. स्वास्थ्य प्रणाली के लाभार्थियों/ग्राहकों के अधिकारों पर अपर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है।
8. सुझाव
8.1. पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) को अपने क्षेत्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी परिणामों को सुधारने के लिए उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए। पीआरआई को अधिक अनुक्रियाशील होने तथा स्वास्थ्य सेवाओं संबंधी आयोजना, प्रदायगी, अनुवीक्षण और मूल्यांकन के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
8.2. स्वास्थ्य क्षेत्रक और इसके निर्धारकों के तहत कार्यकलापों के प्राथमिकता निर्धारण और सुदृढ़ीकरण के संबंध में राज्यों द्वारा ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण समितियों को पंचायतों की प्रचालनात्मक शाखा बनाया जा सकता है।
8.3. स्वास्थ्य परिणामों को सुधारने में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाने के लिए समुदायों को निर्मल भारत अभियान के तहत निर्मल ग्राम पुरस्कार जैसे पुरस्कारों के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा सकता है।
8.4. समुदाय आधारित प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले जवाबदेही तंत्रों जैसे कि नागरिक चार्टर, रोगियों के अधिकार, सामाजिक जांच, जन सुनवाइयों और शिकायत निपटान तंत्रों के अंगीकरण को प्राथमिकता दी जा सकती है।
8.5. नैदानिक प्रतिष्ठान अधिनियम के उपबंधों का कारगर प्रवर्तन होना चाहिए जिसमें इस अधिनियम के एक भाग के रूप में रोगियों के अधिकारों के चार्टर/विज्ञापन की व्यवस्था करना भी शामिल है।