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जलागम प्रबंधन
जलागम एक सामान्य प्राकृतिक जल निकासी वाली एक भौगोलिक इकाई है। परियोजना का औसत आकार-लगभग 500 से 5,000 हेक्टेयर के बीच है। प्रबंधन के लिए इसका आकार 5000 हेक्टेयर के बीच रखा गया। वर्षों में जलागम विकास के लिए केवल मृदा और जल संरक्षण की अवधारणा बदली है अब इसको समग्र प्राकृतिक संसाधनों के विकास के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। इस प्रकार विकास के लिए क्षेत्रीय दृष्टिकोण के स्थान पर प्रणालीगत दृष्टिकोण को अपनाया जा रहा है। भारत में 68% खेती वर्षा पर निर्भर है जिससे 480 मिलियन लोगों को आजीविका मिलती है। भारत में जहाँ एक बड़ा क्षेत्र बंजर और अर्ध शुष्क जलवायु क्षेत्र के अंतर्गत आता है वहां कृषि क्षेत्र में उत्पादन के लिए जलागम प्रबंधन ही एक विकल्प है खासतौर पर देश के असिंचित क्षेत्रों के लिए।ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत भूमि संसाधन विभाग ने 2009-10 एकीकृत जलागम विकास कार्यक्रम को लागू किया है जिसका उद्देश्य 2027 तक 55 लाख हेक्टेयर वर्षा पर निर्भर भूमि पर कार्य करना है। इस कार्यक्रम को देश के सभी राज्यों में लागू किया जाएगा। इस कार्यक्रम के लिए केंद्रीय और राज्य सरकार द्वारा 90:10 के अनुपात में वित्तीय सहायता प्रदान की गई है। एकीकृत जलागम विकास कार्यक्रम चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जलागम कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जलागम प्रबंधन पहल के माध्यम से मृदा, वनस्पति और पानी जैसे ख़त्म हो रहे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और विकास कर पारिस्थितिक संतुलन बनाना है। इस कार्यक्रम से मृदा के संरक्षण, प्राकृतिक वनस्पति के उत्थान, वर्षा जल संचयन, भूजल स्तर को बढाने में मदद मिली है। इससे विभिन्न प्रकार की फसलों के रोपण और विविध कृषि आधारित गतिविधियों को शुरू करने में मदद मिलती है जो जलागम क्षेत्र में रहने वाले लोगों को स्थायी आजीविका उपलब्ध कराने में सहायक है।